डॉ.शिवप्रसाद सिंह की रचना प्राचीनता,मध्यकालीनता व आधुनिकता का संगम है-अध्यक्ष हिंदुस्तानी एकेडमी

डॉ.शिवप्रसाद सिंह की रचना प्राचीनता,मध्यकालीनता व आधुनिकता का संगम है-अध्यक्ष हिंदुस्तानी एकेडमी

ज़मानियां। हिंदुस्तानी एकेडेमी, प्रयागराज और हिन्दू स्नातकोत्तर महाविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में जलालपुर, चंदौली निवासी सुप्रसिद्ध कथाकार डॉ. शिवप्रसाद सिंह :जीवन और साहित्य विषयक एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी गुरूवार को हिन्दू इंटर कालेज में सम्पन्न हुयी। कार्यक्रम की विधिवत शुरुआत उनके चित्र पर माल्यार्पण के बाद शुरु हुआ।

मुख्य अतिथि अध्यक्ष हिंदुस्तानी एकेडमी डॉ. उदय प्रताप सिंह ने कहा कि हिन्दी साहित्य का बड़ा महल तैयार करने वाले वरिष्ठ साहित्यकारों के जन्म स्थल तक पहुँच कर नयी पीढ़ी में साहित्य के प्रति अनुराग व चेतना पैदा कर रचना के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया जा रहा हैै ताकि युवा पीढ़ी अपनी मिट्टी के लाल को समझे व महसूस कर सके।मै उस मिट्टी को नमन करता हूँ जिस मिट्टी ने वरिष्ठ साहित्यकार व कथाकार डॉ० शिवप्रसाद सिंह को जन्म दिया।डॉ० शिवप्रसाद सिंह को याद करने से ऐसा महसूस होता है कि हम ऋषि परम्परा का स्मरण कर रहे है।इनकी रचना में प्राचीनता,मध्यकालीनता,आधुनिकता का संगम मिलता है।वे इतिहासकार,भारतीय संस्कृति के निर्माता व प्रसिद्ध साहित्यकार के रूप में प्रतिष्ठित हुये तथा आधुनिक विचारक व आंचलिक रचनाधर्मीता के रूप में उन्हें सदैव याद किया जायेगा।वे अपनी ही माटी से प्रतिको व नायको को उठाकर रचना किये।नीला चॉद,अलग अलग वैतरणी,गली आगे मुडती हैै,कर्मनाशा की हार उनकी प्रसिद्ध रचना है।इनकी पूरी रचना एक ग्रन्थावली के रुप में एकेडमी जल्द ही प्रकाशित करेगी।

विशिष्ट अतिथि महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य डॉ. अनिल कुमार सिंह ने कहा कि बच्चे अध्यापक की अनमोल रचना है।उन्हें अच्छे विचारों से संस्कारित करना एवं क्षेत्र के विशिष्टजनों के बारे में बताना तथा उन विचारों को आत्मसाध करना शिक्षक का दायित्व बनता है तभी नयी पीढ़ी नवीन रचना की तरफ अग्रसर हो सकती है।वरिष्ठ साहित्यकार राजेन्द्र सिंह ने कहा कि हिन्दी साहित्य के उत्थान में पूर्वाञ्चल का विशेष योगदान रहा है।पूर्वाञ्चल के पीछड़ेपन के कारण साहित्यधर्मीयों को कुछ दुश्वारियों का सामना करना पड़ा लेकिन अपने मजबूत इरादो से हिन्दी साहित्य के उत्थान में महती भूमिका निभाई।डॉ० शिवप्रसाद सिंह के रचना में जमानियाँ का सूक्ष्म से सूक्ष्म स्थान चाहे प्लेटफार्म हो या मुर्दा सराय,धर्मशाला हो कर्मनाशा सब कुछ विद्यमान है।वे बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे।

संगोष्ठी में सुप्रसिद्ध गीतकार एवं पूर्व अपर आयुक्त, ओमप्रकाश चौबे “ओम धीरज” ,सम्पादक हिन्दुस्तानी त्रैमासिक रविनन्दन सिंह,वीएचयू हिंदी विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर एवं ख्यातिलब्ध गजलकार प्रो.वशिष्ठ अनूप, प्रो. डॉ. नरेंद्र सिंह,डॉ. उमेश प्रताप सिंह , डॉ.शर्वेश पांडेय, डॉ. अवनीश अस्थाना,प्रबंध समिति के अध्यक्ष राम प्रिय राय, प्रबंधक लछिराम सिंह यादव,डॉ. शरद कुमार, डॉ.शेषमणि त्रिपाठी, डॉ. अरुण कुमार, डॉ. संजय कुमार सिंह,डा०अंगद तिवारी,डा० अमित सिंह,मनोज कुमार सिंह,सत्यप्रकाश सिंह, मनोज कुमार पाण्डेय,उपेन्द्र सिंह,प्रमोद सिंह,गिरीश कुमार, प्रमोद कुमार यादव, सुरेश कुमार प्रजापति, सौरभ यादव , रिंकू मौर्या, मनोज कुमार सरोज,दिव्यलता शर्मा, बुशरा परवीन, कमलेश प्रसाद, राजेश कुमार आदि लोग उपस्थित रहे। अध्यक्षता महाविद्यालय के प्राचार्य डा० देवेन्द्र नाथ सिंह व संचालन डॉ. अखिलेश कुमार शर्मा शास्त्री ने किया।

इसके पश्चयात हिंदुस्तानी एकेडमी साहित्यकार के द्वार कार्यक्रम के अंतर्गत ये दोनों संस्थाएं चंदौली स्थित बाबू शिवप्रसाद सिंह के गांव जलालपुर में काव्य गोष्ठी कर उनके साहित्यिक अवदान को याद किये।