जमानिया। शनिवार के दिन ललही छठ के अवसर पर व्रती महिलाओं ने व्रत रख कर विधि विधान से पूजा अर्चना की तथा अपने पुत्र की लंबी उम्र के लिए आशीर्वचन लिया आज ही के दिन बलराम जयंती भी है, बलराम जी का शस्त्र हल होने के कारण आज किसान भाई लोग हल भी पूजा विधि विधान से करते हैं।
हलषष्ठी या हल छठ बलराम जयंती, ललही छठ
भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म भादों मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को हुआ था, इसलिए इस दिन को बलराम जयंती भी कहा जाता है। बलराम को बलदेव, बलभद्र और बलदाऊ के नाम से भी जाना जाता है। बलराम को शेषनाग का अवतार माना जाता है. बलराम को हल और मूसल से खास प्रेम था। यही उनके प्रमुख अस्त्र भी थे. इसलिए इसदिन किसान हल, मूसल और बैल की पूजा करते हैं। इसे किसानों के त्योहार के रूप में भी देखा जाता है।
संतान की लंबी आयु के लिए माएं इस दिन व्रत रखती हैं. वह अनाज नहीं खाती हैं. इस दिन व्रत रखने वाली माताएं महुआ की दातुन करती हैं। कई जगहों पर हल छठ, ललही छठ या फिर तिनछठी भी इसे कहा जाता है. इस व्रत में हल से जुती हुई अनाज और सब्जियों का इस्तेमाल नहीं किया जाता. इस दिन तालाब में उगे अनाज जैसे कि तिन्नी या पसही के चावल खाकर व्रत रखा जाता है। गाय का दूध और दही का इस्तेमाल भी इस व्रत में वर्जित होता है। भैंस का दूध, दही और घी का प्रयोग किया जाता है।
इस व्रत की पूजा हेतु भैंस के गोबर से पूजा घर में दीवार पर हर छठ माता का चित्र बनाया जाता है। गणेश और माता गौरा की पूजा की जाती है। कई जगहों पर महिलाएं तालाब के किनारे या घर में ही तालाब बनाकर, उसमें झरबेरी, पलाश और कांसी के पेड़ लगाती हैं. इस तालाब के चारों ओर आसपास की महिलाएं विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर हल षष्ठी की कथा सुनती हैं।