इमाम हुसैन की मदद के लिए कर्बला में अपने बेटों की कुर्बानी देने वाले उन ब्राह्मणों की क्या है कहानी रही। मौलाना तनवीर रजा सिद्दीकी

गाजीपुर के जमानियां नगर कस्बा के शाही जामा मस्जिद के मौलाना एवं सेकेट्री तनवीर रजा सिद्दीकी ने इमाम हुसैन की कुर्बानी को बयां करते हुए बताया कि जब कर्बला की जंग हुई थी। तो उस वक्त इमाम हुसैन की मदद के लिए कुछ ब्राह्मणों ने जंग में हिस्सा लिया था। इन ब्राह्मणों ने इस जंग में अपने बेटों की भी कुर्बानी दे दी थी। इमाम हुसैन की मदद के लिए कर्बला में अपने बेटों की कुर्बानी देने वाले उन ब्राह्मणों अहम योगदान रहा है। नगर कस्बा स्थित शाही जामा मस्जिद के मौलाना व सेकेट्री तनवीर रजा सिद्दीकी ने बताया कि करीब 1400 साल पहले इराक में एक जंग लड़ी गई थी, जिसे कर्बली की जंग या जंग ए कर्बला के नाम से जाना जाता है। मुहर्रम को मुस्लिम मातम के दिन के रुप में मनाते हैं। ये मातम करबला के युद्ध में हुई मौतों को लेकर मनाया जाता है। जिसमें कई लोग शहीद हो गए. लेकिन, क्या आप जानते हैं करबला का युद्ध सिर्फ मुसलमानों के लिए ही नहीं, बल्कि एक खास ब्राह्मणों के लिए बहुत मायने रखता है। उन्होंने कहा कि जब नबी मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन जंग ए कर्बला में गए थे। तो उनकी मदद के लिए कुछ ब्राह्मण भी इस जंग में पहुंचे थे। इतना ही नहीं, उन्होंने इस जंग में अपनी शहादत देकर हिंदू-मुस्लिम के बीच एक प्रेम की ऐतिहासिक कहानी लिखी थी। ऐसे में हम आपको विस्तार से बताते हैं कि ये जंग किस के बीच हो रही थी। और किन ब्राह्मणों ने इमाम हुसैन की मदद की और उन ब्राह्मणों के प्रेम और भाईचारे को लेकर क्या कहानियां कही जाती हैं और इतिहास के पन्नों में इस जंग को लेकर क्या लिखा गया है। बता दें कि कर्बला की लड़ाई करीब 1400 साल पहले इराक में एक जंग में लड़ी गई थी। जिसे कर्बली की जंग या जंग ए कर्बला के नाम से जाना जाता है। इस जंग का मुख्य कारण था। एक बादशाह यजीद. यजीद की हुकुमत ईराक, ईरान, यमन, सीरिया के कई इलाकों में था। और वो लगातार इंसानियत के खिलाफ फरमान जारी कर रहा था। सिद्दीकी ने बताया कि उसने अपने हुकुमत के विस्तार के लिए इमाम हुसैन को गुलाम बनाने की सोची, लेकिन इमाम हुसैन ने गुलामी ना स्वीकार करते हुए उससे जंग लड़ी। इसी लड़ाई का नाम जंग ए कर्बला है। किन ब्राह्मणों ने दिया साथ इस जंग में जिन ब्राह्मणों का जिक्र किया जाता है। वो कौन थे। तनवीर रजा सिद्दीकी ने कहा कि वे मोहयाल ब्राह्मण थे। जब इमाम हुसैन जंग में जा रहे थे। तो उन्होंने मदद के लिए हिंदू राजा और मोहयाल राजा राहिब सिद्ध दत्त को इस जानकारी पहुंचाई। इसके बाद राहिब सिद्ध दत्त ने भी इस जंग में शामिल होने का फैसला किया। लेकिन जब तक वो वहां पहुंचे इमाम हुसैन शहीद हो चुके थे। बता दें कि वीर मोहयाली सैनिकों ने कर्बला में जहां पड़ाव डाला था। उस जगह को हिंदिया कहते हैं,साथ ही इन मोहयाल ब्राह्मणों को हुसैनी ब्राह्मण के नाम से जानता है। बता दें कि हुसैनी ब्राह्मण अरब, कश्मीर, सिंध, पाकिस्तान आदि जगहों पर रहते हैं। और मुहर्रम के दौरान दुख प्रकट करते हैं। हुसैन ब्राह्मण, हुसैन की दुआ के बाद जन्मे थे। मान्यताओं के अनुसार, उस वक्त राहब सिद्ध दत्त के कोई संतान नहीं थी। तो उन्होंने इमाम हुसैन से संतान की मांग की. कहा जाता है कि इमाम हुसैन ने पहले उन्हें संतान देने से मना कर दिया। क्योंकि उनकी किस्मत में ऐसा नहीं है। फिर बाद में हुसैन ने बेटों का वरदान दिया और दत्त को 7 बेटे हुए और ये सभी इस कर्बला की जंग में शहीद हुए। रजा ने बताया कि हुसैनी ब्राह्मणों ने जंग में यजीद की फौज ने पहले ही इमाम हुसैन का सिर काट दिया था। और उनके सिर को महल की ओर ले जा रहे थे। उस वक्त राहिब दत्त और उनकी सेना ने यजीद से मुकाबला किया और ये सिर ले लिया। कहा जाता है कि इस सिर को बचाने के लिए उन्होंने अपने बेटों का सिर कलम कर दिया और बहादुरी से यजीद का मुकाबला किया. जंग-ए-कर्बला में कई मोहयाली सैनिकों वीरगति को प्राप्त हुए।