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वाराणसी के मुकीम गंज मे माहे ए रमजान के पवित्र महीना मे रोजेदार नसीर अहमद अपने मकान पर आलिमों द्वारा सबीना के मौके पर सुबह से लेकर रात्रि ८ बजे तक कुरान पाक की पढ़ाई कराई गयी। पढ़ाई खत्म होने के बाद लगभग सौ की तदाद मे रोजेदार
लोगों को अफ्तार कराई गयी। उक्त मौके पर आलिमों ने बताया की कुरान भर के लाखों मुसलमान हज के लिए हर साल सऊदी अरब पहुंचते है। उन्होंने बताया की इस्लाम का यह प्राचीन धार्मिक अनुष्ठान दुनिया के मुसलमानों के लिए काफ़ी अहम है। नसीर अहमद ने कहा की इस्लाम के कुल पाँच स्तंभों में से हज पांचवां स्तंभ है। सभी स्वस्थ और आर्थिक रूप से सक्षम मुसलमानों से अपेक्षा होती है। कि वो जीवन में एक बार हज पर ज़रूर जाएं। अहमद ने बताया की हज को अतीत के पापों को मिटाने के अवसर के तौर पर देखा जाता है। ऐसा माना जाता है। कि हज के बाद उसके तमाम पिछले गुनाह माफ़ कर दिए गए हैं। और वो अपनी ज़िंदगी को फिर से शुरू कर सकता है। ज़्यादातर मुसलमानों के मन में जीवन में एक बार हज पर जाने की इच्छा होती है।. कुछ मुसलमान तो ऐसे भी होते हैं जो अपनी ज़िंदगी भर की कमाई हज पर जाने के लिए बचाकर रखते हैं। दुनिया के कुछ हिस्सों से ऐसे हाजी भी पहुंचते हैं। जो हज़ारों मील की दूरी महीनों पैदल चलकर तय करते हैं। और मक्का पहुंचते हैं।मुसलमानों के लिए इस्लाम के पाँच स्तंभ काफ़ी मायने रखते हैं। ये स्तंभ पाँच संकल्प की तरह हैं। इस्लाम के मुताबिक़ जीवन जीने के लिए ये काफ़ी अहम हैं। हर मुसलमान का विश्वास होना.लाजिमी है। की दिन में पाँच बार नियम से नमाज़ अदा करना। रमज़ान के दौरान रोजा मे उपवास रखना। नसीर अहमद ने बताया की मुसलमानों का ऐसा मानना है कि अल्लाह ने पैग़ंबर अब्राहम (जिसे मुसलमान इब्राहीम कहते हैं) को आदेश दिया कि वो अपनी पत्नी हाजरा और बेटे इस्माइल को फ़लस्तीन से अरब ले आएं ताकि उनकी पहली पत्नी सारा की ईर्ष्या से उन्हें (हाजरा और इस्माइल) बचाया जा सके। मुसलमानों का ये भी मानना है कि अल्लाह ने पैग़ंबर अब्राहम से उन्हें अपनी क़िस्मत पर छोड़ देने के लिए कहा. उन्हें खाने की कुछ चीज़ें और थोड़ा पानी दिया गया. कुछ दिनों में ही ये सामान ख़त्म हो गया. हाजरा और इस्माइल भूख और प्यास से बेहाल हो गए