जमानियां। स्टेशन बाज़ार स्थित हिन्दू स्नातकोत्तर महाविद्यालय के सभागार में आदिकवि महर्षि वाल्मीकि जी की जयंती मनाई गई। सर्वप्रथम महर्षि के तैल चित्र पर माल्यार्पण महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. देवेंद्र नाथ सिंह, अर्थशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ. शरद कुमार, हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. सुरेंद्र तिवारी, राजनीति शास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ. मदन गोपाल सिन्हा, अंग्रेजी विभागाध्यक्ष डॉ. राकेश कुमार सिंह,डॉ. अंगद प्रसाद तिवारी सहित प्राध्यापक-कर्मचारी एवं छात्र-छात्राओं ने किया।
डॉ. सिन्हा ने आदिकवि के जीवन पर प्रकाश डालते हुए लगन और परिश्रम के बल पर डाकू से महर्षि बने वाल्मीकि के जीवन से शिक्षा लेकर बुरे कर्मों का परित्याग कर सत्कर्म में प्रवृत्त होने का आह्वान किया। डॉ. सुरेन्द्र तिवारी ने महर्षि द्वारा राम नाम सिद्ध किये जाने व उनके साधना पक्ष के संदर्भों को रखते हुए तप बल व साधना की महत्ता का रेखांकन करते हुए वाल्मीकि रामायण की कथा -उद्धरणों की विस्तार से चर्चा की। डॉ. शरद कुमार ने उनके जीवन पर प्रकाश डालते हुए मर्यादा, सत्य, प्रेम, कर्तव्य, भ्रातृत्व, मित्रत्व एवं सेवक धर्म की सृष्टि करने वाले महर्षि को नमन किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. देवेंद्र नाथ सिंह ने कहा कि मानव जीवन में कर्म की उपादेयता स्वयं सिद्ध है। महर्षि वाल्मीकि का जीवन और कर्म हमें शिक्षा देता है कि मानवीय कर्तव्यों के पालन द्वारा हम अपना और अपने समाज का भविष्य उज्ज्वल कर सकते हैं। मैं महर्षि वाल्मीकि को सादर प्रणाम करते हुए सत्कर्म के मार्ग पर प्रवृत्त उनके जीवन-संदेश को उतारने का आवाहन करता हूं। कार्यक्रम के संचालक हिंदी विभाग के एसोशिएट प्रोफेसर डॉ. अखिलेश कुमार शर्मा शास्त्री ने संस्कृत भाषा में रामायण के रचनाकार प्रचेता के पुत्र बाल्यकालीन रत्नाकर नामधारी आश्विन शुक्ल पूर्णिमा को जन्मे महर्षि वाल्मीकि के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जंगल में रहने वाली आदिवासी भीलनी ने बालक रत्नाकर को चुरा लिया और उनका लालन पालन की। ये आदिवासी समाज वनों में रहा करता था और राहगीरों को लूट, मारकर उनकी संपत्ति धन दौलत लूट लेते थे। ऐसा प्रसंग मिलता है कि नारद जी ने इनके परिष्कार हेतु इनसे लूट मार से बचकर भगवत भक्ति का मार्ग अपनाने की सीख दी थी। राम नाम स्मरण करते हुए इन्हें सिद्धि मिली और संस्कृत में रामायण की रचना की थी। आदिकवि के रूप में विख्यात वाल्मीकि ने क्रोंच पक्षी के काम मोहित अवस्था में बहेलिए द्वारा मारे जाने से द्रवित होने की दशा में जो शब्द फूटे वही संसार के लिए प्रथम श्लोक बना – मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः। यतक्रोंचमिथुनादेकम अवधीः काममोहितम।। राष्ट्रीय सेवा योजना एवं महाविद्यालय परिवार के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस कार्यक्रम में रोवर्स प्रभारी डॉ. संजय कुमार सिंह, एन. सी.सी. ए. एन. ओ.लेफ्टिनेंट ए.पी. तिवारी , इतिहास विभागाध्यक्ष डॉ. शशि नाथ सिंह, डॉ. ओम प्रकाश लाल श्रीवास्तव, डॉ. संजय कुमार राय, डॉ. जितेंद्र कुमार सिंह, कमलेश प्रसाद, प्रिया मौर्या, किरण शर्मा, रचना त्रिपाठी सहित गणमान्य लोग एवं छात्र छात्राएं उपस्थित थे।