आज भी अपने बदहाली का रोना रो रही नंदगंज सिहोरी चीनी मिल

आज भी अपने बदहाली का रोना रो रही नंदगंज सिहोरी चीनी मिल

गाजीपुर। पटेल आयोग की संस्तुति पर सन् 1975 में स्थापित की गई नंदगंज की चीनी मिल डेढ़ दशक में ही सियासत की भेंट चढ़ गई। कुप्रबंधन और तत्कालीन सरकार की दोषपूर्ण नीतियों के चलते चीनी मिल को बंद करके मिल श्रमिकों को 1999 में जबरन वीआरएस दे दिया गया। मिल को चालू करने के कई प्रयास किए गए लेकिन राजनीति के सुरमाओं की उदासीनता के चलते मिल को अभी तक चालू नहीं कराया गया। सबसे अफसोस की बात यह है कि लोकसभा चुनाव में नंदगंज की चीनी मिल को पुन:चालू कराने के लिए किसी भी दल ने मतदाताओं से कोई वादा नहीं किया। पूर्वांचल में बढ़ती बेरोजगारी को देखते हुए तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने पटेल आयोग की संस्तुति पर गाजीपुर जिले के नंदगंज के पास सिहोरी गांव में चीनी मिल की नींव वर्ष 1975 में रखी थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने सन् 1978 में मिल के तैयार होने पर इसका विधिवत उद्घाटन भी किया था। उद्घाटन के दौरान मुख्यमंत्री जी ने कहा था कि चीनी मिल के खुलने से जिले में बेरोजगारी काफी हद तक दूर होगी। किसानों को गन्ने का मूल्य बेहतर मिलेगा। मिल चालू होने के बाद जिले के किसानों ने 10 हजार से अधिक हेक्टेयर में गन्ना की खेती करना शुरू कर दिया। बाराचंवर, मरदह, औडि़हार, भीमापार सहित जिले के अन्य हिस्सों में गन्ना की खेती होने लगी। शुरूआती दौर में मिल में करीब 1200 मजदूरों को रखा गया। मिल के चलने से जिले के लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलने लगा। इस मिल से सरकार को करोड़ों रुपये का राजस्व भी प्राप्त होता था। यह मिल सन् 1990 तक काफी लाभ में रही। तत्कालीन निदेशक टी. एन.भौमिक के कार्यकाल में मिल ने रिकार्ड तोड़ चीनी का उत्पादन किया। उस समय करीब एक लाख बोरी चीनी का उत्पादन किया गया था। कुप्रबंधक और लूट खसोट के चलते यह मिल 1991 से घाटे में जाने लगी। इसके बाद मिल पर करोड़ों रुपये की देनदारी हो गई। किसी तरह 1999 तक मिल को चलाया गया। जब घाटा अधिक बढ़ा तो मिल को बंद करके सभी श्रमिकों को जबरन वीआरएस थमा दिया गया। इसका मिल श्रमिकों ने विरोध भी किया लेकिन सरकार मिल श्रमिकों के आगे नहीं झुकी। श्रमिकों की मांग थी कि मिल को पुन: पूरी क्षमता के साथ चलाया जाए और श्रमिकों का  बकाया दिया जाए। देखा जाए तो यह मिल पूर्वांचल की बदहाली पर पटेल आयोग की तरफ से केंद्र को भेजी गई रिपोर्ट के आधार पर स्थापित की गई थी ।लेकिन मिल सियासत के घेरे में इस कदर फंसी की डेढ़ दशक बाद भी मिल को पुन: चालू कराने का किसी भी सत्ताधारी दल ने प्रयास नहीं किया।कुछ लोगो के नेतृत्व में आंदोलन भी हुआ लेकिन शासन ने सिर्फ आश्वासन के अलावा कुछ नहीं किया। यही वजह रही कि इस समय जिले में गन्ना का रकबा सिमट कर एक हजार हेक्टेयर से भी कम हो गया है। नंदगंज बरहपुर ग्राम के लोगो का कहना है कि चीनी मिल बंद होने से जिले का विकास थम गया है और लोग बेरोज़गार हो गए। गांव के लोगो का कहना है कि सभी चुनावों में चीनी मिल को चालू करने का कोरा आश्वासन मिलता है लेकिन चुनाव बाद सब नेता भूल जाते हैं सब से अफसोस की बात ये है कि अब नेता लोग आश्वासन भी नहीं दे रहे हैं ।एक तरह से आश्वासन नहीं देना भी जरूरी नहीं समझ रहे हैं क्यो कि विधायक, सांसद,या सरकार किसी की भी हो बंद चीनी मिल को किसी ने चालू कराना उचित नहीं समझा जिस वजह से यहा के लोग और भी बेरोज़गार हो गए।  लोगो का कहना है कि चीनी मिल बंद होने से जिले के व्यापार में भी काफी कमी आई है चीनी मिल जब चलती थी तो लाखो का नंदगंज बाजार का कारोबार होता था चीनी मिल से छोटे छोटे लोग जुटे होने के वजह से उनका घर परिवार चलता था पर चीनी मिल बंद हो जाने से जहा किसानों को नुकसान हुआ वही नंदगंज बाजार और आस पास के व्यापारियों का कारोबार भी कम हुआ। चीनी मिल अब चालू होगी या इस पर अब सिर्फ राजनीत होगी यह  नंदगंज बरहपुर ग्राम सभा और उसके आस पास के आने वाले गांव के किसानों और व्यापारियों के लोगो के लिए चीनी मिल चालू होने कि उम्मीद अब टूटने लगी है। लोगो ने कहा किसी कि भी सरकार रही हो किसी ने भी चीनी मिल को चालू करवाने में पहल नहीं की।अभी भी नंदगंज और आस पास के लोग आस लगाए है कि बंद पड़ी चीनी मिल को पुनः चालू किया जाय