मतसा। सब्बलपुर गांव में मेधनुष यज्ञ मेला के अवसर पर रामलीला मैदान में पं राधेश्याम महराज ने रामकथा सुनाते हुए कहा कि संत चलता फिरता हुआ तीर्थ है, पतित पावनी गंगा सदृश्य होता है। तीर्थ के अथवा गंगा जी के पास जाते हैं और स्नान करते हैं तब पवित्रता आती है लेकिन संत तो गाँव, नगर और झोपड़ी तक जाकर जीव का कल्याण करते हैं।
महाराज ने आगे कहा कि संत का कोई विशेष भेष नहीं होता अपितु संत एक विशेष स्वभाव का नाम है, उसका पहनावा कुछ भी हो सकता है। महाराज कहा कि रामजी ब्रह्म के अवतार अवश्य हैं लेकिन उनको समाज में जो आदर और ऊँचा स्थान मिला है ,जन – जन में जो उनके प्रति श्रद्धा एवं विश्वास की दृढ़ भावना है। वह अवतारी पुरुष के नाते केवल नहीं है। अपितु त्याग और वैराग्य का जो जीवन उन्होंने जिया और ऊँच -नीच, गरीब-अमीर की भावना से ऊपर उठ कर सबको सम्मान देने और सहायता करने का जो स्वभाव उनका था इस नाते हजारों बर्ष बीत जाने के बावजूद आज भी समाज में उनको आदर्श माना जाता है। केवट, शबरी और जटायु इत्यादि के साथ रामजी के सम्बंध आज भी प्रेरणा दायक हैं। इस आयोजन में संत भिखारी, पं. शिवजी महाराज ने भी कथा अमृत पान कराया। कथामंच का संचालन विनोद महाराज ने किया।