नहीं रहे विश्‍वनाथ शास्‍त्री

नहीं रहे विश्‍वनाथ शास्‍त्री

जमानियां। क्षेत्र के असाव गांव निवासी पूर्व सांसद विश्वनाथ शास्त्री का रविवार की देर रात लखनऊ में निधन हो गया। उनका पार्थिव शरीर सोमवार को देर शाम तक उनके पैतृक आवास असाव में लाया जायेगा और मंगलवार को अंतिम संस्कार किया जायेगा।

जानकारी के अनुसार शास्‍त्री जी मध्‍यम वर्गीय परिवार में जनमें एक किसान परिवार से तालुक रखते थे। उनका जन्म 6 जुलाई 1945 को हुआ था।बचपन मे इनका नाम विश्वनाथ यादव था। जब उन्‍होंने एमए की पढ़ाई वाराणसी के काशी विद्यापीठ से पूर्ण किया और उनको शास्त्री की डिग्री मिली । इसके बाद से उनका नाम विश्वनाथ शास्त्री के नाम से जाने जाने लगे। छात्र जीवन में ही वो कम्युनिष्ट विचारधारा को मानने लगे थे और वो आल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन के नेता के रूप में काम करने लगे। उसके बाद उनकी कार्य कुशलता को देखते हुए अखिल भारतीय नौजवान सभा का प्रदेश उपाध्यक्ष बनाया गया। उनकी लोक प्रियता और कार्य कुशलता को देख कर उन्हें गाजीपुर का जिला सचिव बनाया गया और 1889 में उन्हें कम्युनिष्ट पार्टी से लोकसभा प्रत्‍याशी बनाया गया। जिसमें उनको सफलता नहीं मिली और वो जगदीश कुशवाहा से चुनाव हार गये। उनके लगन और समाज में पकड़ को देखते हुए पार्टी ने उन्‍हें दुबारा 1991 में कम्युनिष्ट पार्टी का प्रत्‍याशी बनाया। उस समय जनता दल से पार्टी का समझौता था और उन्हें जनता दल समर्थित उमीदवार घोषित किया गया और उन्होंने भाजपा के मनोज सिन्हा को हरा कर पहली बार लोकसभा में कदम रखा।उसके बाद वो कभी चुनाव नही लड़े और अपने परिवार के साथ लखनऊ के गोमतीनगर में रहने लगे।इधर कुछ दिनों से उनके पुत्र आलोक उर्फ विनोद ने बताया कि कुछ तबियत खराब चल रहा था और उनका इलाज लखनऊ में ही हो रहा था कि अचानक देर रात को उनकी मृत्यु हो गयी।इस बाबत कम्युनिष्ट पार्टी के जिला सचिव अमेरिका यादव ने बताया कि शास्त्री जी विनम्र स्वभाव के ब्यक्ति थे और वो स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व पूर्व विधाक रहे राम सुन्दर शास्त्री व सरजू पाण्डे जी के विचारों से बहुत प्रभावित रहते थे और उनके दिशा निर्देशन में बहुत प्रभावशाली हो गये थे।आज उनकी कमी को पार्टी में कोई पूरा नही कर सकता।उनकी कमी हमेशा पार्टी को महसूस होती रहेगी और इस जनपद में दूसरा कोई विश्वनाथ शास्त्री नही पैदा हो सकता। मैं उनको अपनी व पार्टी की तरफ से श्रद्धांजलि देता हूँ और इस दुख की घड़ी में उस परिवार के साथ मजबूती से खड़ा हूँ।

अनोखा था चुनाव का प्रचार

वर्ष 1991 में सांसद बने विश्वनाथ शास्त्री को वह दिन अभी भी नहीं भूलता। वह बाइक से प्रचार करने निकलते। लोग मिलते और खुद उनके प्रचार में जुट जाते। उन्होंने वह चुनाव मतदताओं की मदद से जीता।

दो दशक बीतने के बाद भी पूर्व सांसद विश्वनाथ शास्त्री को उनके चुनाव की याद ताजा है। उन्होंने अपना ठिकाना स्टेशन रोड स्थित कम्युनिस्ट पार्टी कार्यालय को बना रखा था। स्‍टेशन बाजार निवासी स्‍व. राधेमोहन यादव ने उनका पूरा साथ दिया और पग पग पर उनके साथ खडे रहे। सुबह चार बजे बिस्तर छोड़ते। मार्निग वाक करते हुए नगर के आसपास के गांवों में पहुंच जाते। लोगों के साथ बैठते। बात चीत करते और आठ बजे तक लौट कर कार्यालय आते। वहां मौजूद कार्यकर्ताओं से बातचीत कर क्षेत्र में अकेले ही निकल जाते थे। वह जिधर से गुजरते रास्तों में लोग रोक-रोक कर उनका स्वागत करते जिस गांव में वह पहुंचते वहां पर लोगों की भीड़ जुटने लगती। धीरे-धीरे हुजूम सा लग जाता। यही नहीं चुनाव नजदीक आया तो कार्यकर्ताओं ने अपने खर्च पर जीप मुहैया करा दी। उसी में लाउडस्पीकर बांध दिया। उसी से प्रचार करते। चुनाव का परिणाम घोषित हुआ तो नतीजा उनके पक्ष में रहा।