दहेज

दहेज

दहेज

गरीबी अब शैतान लगत बा।
गरीबी अब शैतान लगत बा।
बचिया के तिलकहरू अइलें
ख़िरकदम रसगुल्ला खइलें।
ऊपर से फिर चाय पकौड़ी
घर में ना पैसा दुई कौड़ी।
खाये जमके पान सुपारी
दिहलें ना लड़की के सारी।
फिर छेना काटे दुआरी
लेन-देन के बात बा भारी।
दान दहेज की बात चली जब
लागे कर्जा और बढ़ी अब।
अगुआ आपन सुहरावे दाढ़ी
कहे देदिहा कवनो गाड़ी।
कहली हम हमसे ना सपरी
बात यहाँ के कईसे नकरी।
बिटिया बी ए पास पढ़ल बा
सुंदरता में खूब गढ़ल बा।
राउर कुल के मान बढ़ायी
आत्मा मोरो खूब जुड़ाई।
लेकिन समधी हुए खड़े
अपनी बात पर रहे अड़े।
यहां पे सब कुछ भईल बेकार
समधी मांगे सेंट्रो कार।
प्रीत नहीं यह हित लालची
यहां न केवनो बात बनत बा।
गरीबी अब शैतान लगत बा।

“रमेश सिंह यादव”