ग़ाज़ीपुर। भारत के प्रधानमंत्री, देश को 2025 तक टीबी मुक्त बनाने की सोच को रखते हुए जनपद में भी उस दिशा में कार्य होते हुए दिख रहे हैं और इसको अमली रूप देने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने भी पूरी तरह से कमर कस ली है। इसी क्रम में जनपद गाजीपुर में 4 बेड का डीआर (ड्रग रेजिस्टेंस) टीबी सेंटर की स्थापना की गई है। इसकी स्थापना हो जाने के बाद से बीएचयू तक का सफर इलाज कराने वाले मरीजों को काफी सहूलियत हो रही है।
क्षय रोग के नोडल अधिकारी डॉ के के वर्मा ने बताया कि चार बेड का डीआर टीबी सेंटर 1 जनवरी 2019 से जनपद में कार्य कर रहा है। इसके पूर्व एमडीआर (मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस) और एक्सडीआर (एक्स्टेंसिव्ली ड्रग रेजिस्टेंस) मरीजों को इलाज के लिए बीएचयू वाराणसी जाना पड़ता था। उन्होंने बताया कि 2018 में टीबी के 2,756 मरीजों का इलाज किया गया और उन्हें डीबीटी की सुविधा भी दी गई। वहीं 3,062 मरीजों की एमडीआर जांच हुई जिसमें 127 मरीज पॉज़िटिव पाए गए जिन्हें इलाज पर रखा गया। 2019 में अब तक 59 मरीज गाजीपुर के डीआर टीबी सेंटर में एडमिट कर इलाज शुरू किया गया है।जिला पीएमडीटी एवं टीवी एचआईवी कोऑर्डिनेटर डॉ धीरेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि टीबी के जो मरीज जनरल दवा लेते हैं, दवा लेते समय उनकी सीबी-नाट जांच की जाती है। यदि इसमें मरीज रिफ़ांप्सिन के प्रति रजिस्टेंस यानि इस दवा का उन पर असर नहीं होता, निकलता है तो एमडीआर की श्रेणी में आता है। इसके बाद उस मरीज की दवा प्रथम लाइन यानि 6 माह की दवा को बंद कर सेकंड लाइन यानि 9 से 12 माह की दवा शुरू की जाती है जिसे एमडीआर का मरीज कहा जाता है। इन मरीजों का जिला चिकित्सालय गाजीपुर से ब्लड का सैंपल लेकर और जांच करा डीआर टीबी सेंटर में भर्ती कराया जाता है। टीबी दवा की पहली डोज स्टाफ नर्स अपने सामने मरीज को देती है।उन्होंने बताया कि एमडीआर मरीज की जांच गाजीपुर में होगी जबकि एक्सडीआर के लिए सैंपल बीएचयू वाराणसी जाएगा, जिसकी रिपोर्ट करीब 45 से 60 दिनों में आती हैऔर यदि इस रिपोर्ट में एक्सडीआर के लक्षण पाये जाते हैंतो मरीज की एमडीआर की दवा बंद कर बीएचयू रेफर किया जाता है। उन्होंने बताया कि मरीज के आने जाने के लिए ₹600 का लाभांश उसके खाते में दिया जाता है जबकि गाजीपुर आने जाने के लिए ₹300 का लाभांश दिया जाता है।