राम की लीलाओं का मार्मिक व मनोहारी किया गया मंचन

राम की लीलाओं का मार्मिक व मनोहारी किया गया मंचन

कन्दवा(चन्दौली)। क्षेत्र के अरंगी गांव में चल रहे 10 दिवसीय रामलीला के पांचवें दिन बुधवार की रात सीता- अनुसूया मिलन, पंचवटी निवास, सूर्पणखा नासिका छेदन, खर-दूषण वध, मारीच प्रसंग, सीता हरण और जटायु प्रसंग आदि लीलाओं का मार्मिक व मनोहारी मंचन किया गया।

बुधवार की लीला का आरंभ सीता अनुसुइया मिलन से होता है।अनुसूया सीता को पत्नी धर्म से संबंधित बातों को बताती हैं। इसके बाद राम सीता और लक्ष्मण के साथ पंचवटी में पहुंचते हैं।जहां राम और लक्ष्मण दो कुमारों की मनमोहनी सूरत देखकर सूर्पणखा मोहित हो जाती है। वह राम के समक्ष प्रणय निवेदन रखती है लेकिन राम कहते हैं कि मेरी तो शादी हो चुकी है तुम चाहो तो लक्ष्मण से पूछ सकती हो। लक्ष्मण कहते हैं कि मैं तो स्वामी का दास हूं तुम स्वामी के पास जाओ। इधर-उधर भेंजे जाने से नाराज सूर्पणखा भयानक रूप धारण कर सीता पर हमला करती है। राम के इशारे पर लक्ष्मण सूर्पणखा की नाक कान काट देते हैं। सूर्पणखा विलाप करते हुए अपने भाई खर – दूषण के पास पहुंचती है और पूरी घटना बताती है। खर-दूषण बहन के अपमान का बदला लेने के लिए सेना के साथ चल देते हैं। रणभेरी बजने लगती है और राक्षसी सेना राम लक्ष्मण से युद्ध करने पहुंच जाती है। भयंकर युद्ध में राम खर-दूषण सहित पूरी राक्षसी सेना का संहार कर देते हैं। खर-दूषण की मौत से दुखी सूर्पणखा रोती- बिलखती लंका पहुंचती है और सारी बात रावण को बताती है।रावण मामा मारीच को पंचवटी आने को कहता है। मामा मारीच रावण को समझाने का प्रयत्न करता है और कहता है कि राम से वैर करना ठीक नहीं है। कहा कि खर-दूषण को मारने वाला कोई साधारण योद्धा नहीं हो सकता। इस पर रावण मारीच को बुरा भला कहता है और कहता है कि पूरे संसार में मेरे जैसा वीर कौन है।रावण के न मानने पर मामा मारीच सोने का मृग बनकर पंचवटी जाता है। सोने के मृग को देखकर सीता उस पर मोहित हो जाती हैं। सीता के अनुरोध पर राम धनुष -बाण लेकर उसके शिकार को निकल पड़ते हैं। राम के बाण से घायल होकर मारीच हा लक्ष्मण हा लक्ष्मण कहकर चिल्लाता है और प्राण त्याग देता है।उधर सीता राम की आवाज सुनकर लक्ष्मण को राम की खोज में जाने को कहती हैं। लक्ष्मण कुटी के बाहर चारो ओर रेखा खींच कर राम की खोज में निकल जाते हैं। तभी साधु का वेश बनाकर रावण भिक्षा मांगने आता है। सीता रेखा के अंदर से भिक्षा देती हैं लेकिन रावण बंंधी भिक्षा लेंने से इंकार कर देता है। सीता जैसे ही रेखा से बाहर निकलती हैं रावण उनका हरण कर ले उड़ता है। सीता की करुण पुकार सुनकर गिद्धराज जटायु पहुंचता है और अपनी चोंच से मारकर रावण को बेकल कर देता है। रावण अपनी तलवार से जटायु का पंख काट देता है। रावण सीता को ले जाकर अशोक वाटिका में रखता है। उधर लक्ष्मण को देखकर राम कहते हैं कि भाई लक्ष्मण वन में जानकी को अकेला छोड़ना उचित नहीं है।लक्ष्मण कहते हैं कि प्रभु इसमें मेरा कोई दोष नहीं है। माता सीता ने ही मुझे आपका पता लगाने को कहा है। राम लक्ष्मण वापस कुटी पहुंचते हैं लेकिन सीता को न पाकर दुखी हो जाते हैं। दुखी राम पशु पक्षियों भी सीता का पता पूछते हैं।