जमानिया। राधा-माधव ट्रस्ट सब्बलपुर में कोविड प्रोटोकॉल का पूर्णतः पालन करते हुए आयोजित श्रीमद्भागवत कथा में भागवताचार्य चंद्रेश महाराज ने कहा कि हिंदुस्तान की संस्कृति और परंपरा में त्याग और वैराग्य की भूमिका रीढ़ की हड्डी की तरह से है।
दैहिक सुख की जगह आत्मिक शांति एवं आनंद को ही वेद, पुराण, उपनिषद एवं अन्याय धर्म शास्त्रों तथा संतो महात्माओं ने महत्व दिया है। किस राजा, महाराजा के पास धन वैभव कितना था इसकी चर्चा और महत्व न देकर हमारे मनीषियों ने त्याग एवं आदर्श जीवन जीने वालों को उच्च कोटि में स्थान दिया तभी तो हरिश्चंद्र, दधिचि,शिबि के त्याग की गाथा सदियों से गाई जाती है। धर्म को अर्थ के ऊपर स्थान देने का सनातनी आदर्श तीन दशक पहले तक हिंदुस्तानी समाज में व्याप्त था परन्तु धीरे धीरे पाश्चात्य शिक्षा के और व्यापार के दबाव में अर्थ को समाज में सर्वाधिक महत्त्व मिलने लगा है और अर्थ की लोलुपता ने शिक्षा, चिकित्सा , धर्म और राजनीति सभी क्षेत्रों को अपने आगोश में ले लिया है।
यही कारण है कि समाज और देश में चहुंओर पैसा और पैसा ही सबकी चाहत है तथा नैतिकता, मानवता निचले पायदान पर पड़े हुए दिखाई देते हैं।