जमानियां। स्टेशन बाजार स्थित हिंदू स्नातकोत्तर महाविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ.अखिलेश कुमार शर्मा शास्त्री ने उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद के परीक्षार्थियों को सफलता की हार्दिक बधाई संप्रेषित की है।उन्होंने कहा कि कठिन परिश्रम से सफलता पाई जा सकती है इसमें कोई दो राय नहीं। कम अंक पाने वाले शिक्षार्थी मायूस न हों जीवन में सफल होने के लिए अंकों की गणित ही मायने नहीं रखती बल्कि हमारा माद्दा और जज्बा एवं लक्ष्य के प्रति समर्पण हमें सामान्य से विशेष बना देता है।
ऐसे बहुत से नाम हैं मेरे संज्ञान में कुछ नाम आप सबों के मार्गदर्शन हेतु साझा कर रहा हूं। मेरे छात्र रहे हैं रवि प्रकाश उपाध्याय जो आज प्राथमिक शिक्षक के रूप में सेवारत हैं।रवि एम.ए.प्रथम वर्ष में 50 प्रतिशत तक अंक पाते हैं उनके शिक्षक पिता चाहते हैं कि पुत्र पीएच. डी.कर डिग्री कॉलेज में शिक्षक बने।लक्ष्य के प्रति समर्पण ने अंतिम वर्ष में लगभग सत्तर फीसदी अंक दिलाया और प्रदेश स्तरीय पीएच. डी.परीक्षा में भी सफल हुए लेकिन बी एड को आधार बनाकर विशिष्ट बी टी सी के रूप में सेवा को चुन आज प्राथमिक शिक्षक हैं। स्टेशन बाजार निवासी अंकित कुमार सी ए जी में ट्रांसलेटर हैं। इंटरमीडिएट में कम अंक पाने से अतिशय दुखी रहते मोटीवेशन मिला तो अच्छे अंक तो स्नातक में लाए ही बहुत जल्द सेवा योजित भी हुए। एन एस एस स्वयं सेवक सुबोध कुमार जायसवाल इंटर प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर बिहार से बी ए करने हिंदू कॉलेज जमानियां आते हैं।परिवार की आर्थिक स्थिति की चिंता डूबे सुबोध का अंक प्रति वर्ष गिरता रहा बी ए द्वितीय वर्ष पास कर आई टी बी पी में सिपाही पद पर भर्ती हो जाते हैं और पढ़ाई जारी रखते हुए कम अंक के वावजूद विभागीय परीक्षा उत्तीर्ण कर असिस्टेंट कमांडेंट पद पर सुशोभित हैं।हिंदू इंटर कॉलेज के दो होनहार छात्र अम्बरीष सिंह और रवि पांडेय की कहानी कुछ कम रोचक नहीं है।इंटर में तृतीय श्रेणी उत्तीर्ण होते हैं कालांतर में अपने परिश्रम से अम्बरीष नवोदय विद्यालय केरल में शिक्षक बनकर आगे बढ़ने की तैयारी जारी रखते हैं और उत्तर प्रदेश पी सी एस के थ्रू कामर्शियल टैक्स ऑफिसर बनते हैं आज असिस्टेंट कमिश्नर के रूप में सेवारत हैं दूसरे विद्यार्थी रवि पांडेय जो बिहार में न्यायिक सेवा से सम्बद्ध हैं इंटरमीडिएट में अत्यल्प अंकों के बाद भी अपने हौसले के बल पर बिहार सरकार में पी सी एस जे के थ्रू सी जे एम के रूप में कार्यरत हैं।
मित्रों किसी ने क्या खूब कहा है कि कदम चूम लेगी खुद आके मंजिल मुसाफिर अगर अपनी हिम्मत न हारे तो आइए सकारात्मक सोच और हौसले के साथ लक्ष्य के प्रति समर्पण और कठिन परिश्रम से इन शिक्षार्थियों ने जैसे अनुकरणीय मिशाल पेश करते हुए जो इबारत गढ़ी है उससे आप भी सीख लें और सफल हों।जीवन की इस कठिन दौर में अंकों की बड़ी भूमिका नहीं है सकारात्मक सोच और परिश्रम से हमें भी मनचाही भूमिका मिल सकती है बस लगन और लक्ष्य बोध को कायम रखना होगा।