धोका…

धोका…

वो लोग ना जाने कौन थे।
जो खंजर लिये पिछे थे खड़े।

जानता था, शायद अपने थे मेरे ।  
जो खंजर लिये पिछे थे खड़े।

मैं, समझ ना सका आईना उनका ,
वो लोग ना जाने कौन थे।

यह समाज हैं उन गद्दारों का ,
यहाँ पग- पग पैर संभाल के चल।

वो लोग ना जाने कौन थे।
जो खंजर लिये पिछे थे खड़े।

वास्तव…