जमानिया। दिव्य राधा-माधव ट्रस्ट सब्बलपुर के प्रांगण में नित्य आयोजित सत्संग में रामकथा सुनाते हुए भागवताचार्य पंडित चंद्रेश महाराज ने कहा कि जब सती का परित्याग मन से और कर्म से शंकरजी ने कर दिया तब सती भगवान से नित्य यही प्रार्थना करती हैं कि हे प्रभो इस शरीर के रहते जब भोलेनाथ से स्नेह मिलन संभव ही नहीं तो कोई रास्ता निकालिए कि यह शरीर बिना श्रम ही छूट जाए।
महाराज ने आगे बताया कि सती के पिता दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया और उसमें शिवजी एवं सती को आमंत्रित नहीं किया लेकिन भोलेनाथ के मना करने के बावजूद सती उसमें शामिल होने के लिए पिता के घर पहुंच गयीं। पिता के द्वारा आयोजित यज्ञ में अपने पति का भाग नहीं देखकर सती को बड़ा दुख हुआ और वहां उपस्थित सभी को सम्बोधित करते हुए कि यहां पर हमारे पति देवाधिदेव महादेव का अपमान किया गया है इसलिए आप सभी को इसका दुष्परिणाम भोगना पड़ेगा, और ऐसा कहते हुए सती वहीं पर योगाग्नि में अपने शरीर को जला दीं और मरते समय भगवान से प्रार्थना कीं कि हे भगवान आगे मुझे जो भी जन्म देना उस जन्म में भी मेरी प्रीति भोलेनाथ के चरणकमलों में ही संलग्न हो ऐसा वरदान दिजिए। फलस्वरूप उनका अगला जन्म हिमाचल एवं मैना की पुत्री के रूप में हुआ।इस कथा का संदेश यह है कि पत्नी अपने पति के धर्मानुकूल शिक्षा की अवहेलना न करें। ससुराल में पति या अन्य परिजनों द्वारा अपने पिता का अपमान होता देखकर और मायके में अपने पति का अपमान चाहे अपमान करने वाला उसका पिता, मां या भाई ही क्यों न हो,होता देखकर नारी बर्दाश्त नहीं कर सकती।