सुशील कुमार गुप्ता की रिपोर्ट
मतसा। सब्बलपुर रामलीला मैदान में धनुष यज्ञ मेला के तहत आयोजित त्रिदिवसीय श्रीरामकथा के आखिरी दिन गृहस्थ संत बुच्चा जी ने कहा कि जब गुरु की,साधू अथवा संत की कृपा प्राप्त होती है तब जीवन में गुणात्मक परिवर्तन होता है या यों कहें कि जीवन ही उलट जाता है।
लंका प्रवेश के समय जब लंकिनी ने हनुमानजी को रोका तो हनुमानजी ने उसके सिर पर मुष्टिक प्रहार किया चूँकि हनुमानजी संत हैं सो इनका स्पर्श पाते ही जो लंकिनी हनुमानजी को जिंदा ही खा जाने की बात कह रही थी वही सत्संग की महिमा का वर्णन करने लगी। लंकिनी ने कहा कि सत्संग की महिमा और आनंद की तुलना में स्वर्ग एवं संसार के सुख बहुत ही कमतर हैं। भगवान की कृपा जिसको मिल जाती है उसपर शत्रु अनुकूल,बिष भी अमृत तुल्य और अगम्य भवसागर गाय के खुर के समान सहजता से लंघन करने योग्य बन जाता है। संत मिलन की ही महिमा है कि रत्नाकर नामक लुटेरा जो राहगीरों को लूट मारकर अपना एवं अपने परिजनों का पेट पालता था वही उलटा नाम जपकर ही , तपकर ब्रह्मर्षि वाल्मीकि के उपाधि को प्राप्त किये। यहां तक कि अयोध्या की रानी भगवान राम की अर्धांगिनी सीता इन्हीं वाल्मीकि के आश्रम में अपने पुत्रों को जन्म दीं और उनके बालकों का शिक्षण प्रशिक्षण वाल्मीकि आश्रम में ही हुआ।आज तीन दिवसीय श्रीरामकथा के विश्राम दिवस पर सभी सम्मानित कथावाचकों को अंगवस्त्र देकर सम्मानित किया गया।इस ज्ञानयज्ञ में भागवताचार्य चंद्रेश महाराज, राधेश्याम चौबे, कैलाश और विनोद श्रीवास्तव ने भी कथा अमृत पान कराया।कथामंच का संचालन व्यास रामदत्त यादव ने किया।