जमानियां। पिता की साया जिनके सिर से उठ चुका हो वे ही पिता के न होने के दर्द को समझ सकते हैं। बरुईन निवासी सुबोध नाम के अनुरूप मां और बड़े भाई ज्ञानोद के संरक्षण में सिपाही से असिस्टेंट कमांडेंट बनकर यह साबित कर दिया है कि कठिन परिश्रम और लक्ष्य निर्धारित कर की गई मेहनत एक न एक दिन सफलता दिलाती ही है।
सिपाही से असिस्टेंट कमांडेन्ट बनकर सुबोध ने जो मिशाल कायम की है वह असाधारण है। अपने 11 वर्ष के सेवा जीवन में सुबोध ने ड्यूटी के प्रति पूरी वफ़ादारी करते हुए विभागीय परीक्षा के दम पर फर्श से अर्श का सफर तय कर यह साबित कर दिया कि दृढ़ इच्छा शक्ति के आगे सब कुछ संभव है।जिस सुबोध की कहानी आपके सामने है वह तमाम युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बन सकती है, जो लक्ष्य तय कर सफर की शुरुआत तो करते हैं परंतु बीच में झंझावातों के डर से विचलित हो लक्ष्य से भटक जाते हैं। असफल होने पर वे निराश व कुंठित हो जाते हैं। लेकिन अदम्य इच्छा शक्ति के धनी सुबोध ने सिपाही के तौर पर नौकरी शुरू कर तमाम पारिवारिक, सामाजिक, विभागीय जिम्मेदारियों का सफलता पूर्वक निर्वहन करते हुए आज असिस्टेंट कमांडेंट बन सके। वर्ष 2007 में भारत तिब्बत सीमा पुलिस बल में बतौर सिपाही अपनी पहली नौकरी की शुरुआत करने वाले सुबोध ने तय कर लिया था कि उन्हें उच्च अधिकारी के रूप में देश की सेवा करनी है। उद्देश्य की पूर्ति में शिक्षा का विशेष महत्त्व है अतः उन्होंने इसके लिए अध्ययन हर परिस्थिति में जारी रखा। 2011 में पहली बार में ही एसआई पद की परीक्षा पास कर लिया। एसआई बनने के बाद भी पढ़ाई जारी रखा। वर्ष 2015 से इंस्पेक्टर पद पर कार्यरत सुबोध ने पहली बार 2018 में असिस्टेंट कमांडेंट की विभागीय परीक्षा में भाग लिया। सुबोध ने पहली परीक्षा में ही प्रथम स्थान प्राप्त कर सबको चौंका दिया। मिलनसार स्वभाव के बेहद शरीफ , कर्तव्य निष्ठ युवक सुबोध आईटीबीपी में असिस्टेंट कमांडेंट बन गए हैं। सुबोध की सफलता की यह कहानी किसी फिल्म सरीखा लगती है। हालांकि सुबोध ने इस असाधारण सफलता को लंबे समय के कठिन परिश्रम से हासिल किया है। सुबोध ने अपनी सफलता को अपने पिता को समर्पित किया है। सुबोध जब 7 वर्ष के थे तभी उनके पिता का असमय निधन हो गया था। वे अपनी सफलता का श्रेय कठिन परिश्रम और अपनी मां सोना देवी से प्राप्त आशीर्वाद को देते हैं जिन्होंने अत्यधिक गरीबी के बावजूद अपने बच्चों की अपनी वृत्ति से ऊपर उठ कर कठिन परिश्रम कर सभी बच्चों की शिक्षा दीक्षा एवं परवरिश की।सुबोध चार भाईयों में दूसरे स्थान पर हैं।इनके बड़े भाई ज्ञानोद कुमार ,वर्तमान में भारत सरकार के सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के एनएसएसओ विभाग में सांख्यिकी अधिकारी पद पर वाराणसी में कार्यरत हैं।जबकि छोटे भाई सर्वदेव ने 2016 में आईआईटी की परीक्षा उतीर्ण कर भारतीय वैज्ञानिक एवं अनुसंधान संस्थान मोहाली में अध्ययन कर रहे हैं। सबसे छोटा भाई भी सिविल सर्विसेज परीक्षा की तैयारी कर रहा है। हिन्दू स्नातकोत्तर महाविद्यालय, ज़मानियाँ राष्ट्रीय सेवा योजना के वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी डॉ. अखिलेश कुमार शर्मा शास्त्री ने बताया कि सुबोध राष्ट्रीय सेवा योजना के स्वयं सेवक रहे हैं। महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. देवेंद्र नाथ सिंह ने इस शानदार सफलता के लिए हार्दिक बधाई दी है। महाविद्यालय आइ. क्यू. ए. सी.सेल के प्रभारी डॉ. अरुण कुमार, रोवर्स प्रभारी डॉ. संजय कुमार सिंह , पी. ओ.एन. एस. एस. डॉ. अखिलेश कुमार शर्मा शास्त्री एवं डॉ. एम. पी. सिंह ने सुबोध को महाविद्यालय में सम्मानित करने का निर्णय लिया है सचलभाष पर इस आशय की वार्ता भी उनसे कर ली गई है।