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जमानिया। क्षेत्र के इजरी गांव स्थित हनुमान मंदिर के पास लक्ष्मी कटरा में एक दिवसीय सत्संग कथा का आयोजन किया गया। जिसमें आस पास के गांव के लोगों ने शिरकत की और अमृत पान किया।
पंडित चंद्रेश महाराज ने सत्संग के दौरान कहा कि भगवान की कृपा सबको समान रूप से प्राप्त होती है, लेकिन हमारी पात्रता है कि नहीं यह महत्वपूर्ण प्रश्न है? उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे किसी क्षेत्र में जब बारिश होती है तो समान मात्रा एवं वेग से पानी बरसता है। लेकिन कोई पात्र मुँह बंद कर खुले आसमान में रख दिया जाय और एक पात्र का मुख खुला हुआ रखा तो निश्चित रूप से खुले मुख वाला वर्तन में जल भर जाएगा लेकिन बंद मुख वाले बर्तन में एक बूंद भी जल नहीं पड़ेगा। इसी प्रकार परमात्मा की कृपा तो सबके लिए निरन्तर बरस रही है परन्तु हम अपने मन रूपी घट को काम, क्रोध,लोभ, मोह और मद इत्यादि ढक्कन से ढके हुए हो परमात्मा की कृपा से वंचित रह जाएं तो दोष हमारा है, परमात्मा की कृपा की नहीं।
गृहस्थ संत बुच्चा जी ने कहा कि जब तक हम संसार के समस्त आश्रय को छोड़कर केवल परमात्मा की चरण‚ शरण को ग्रहण नहीं करेंगे तब तक परमात्मा हमारी सहायता के लिए उपस्थित नहीं होते। द्रौपदी प्रसंग की चर्चा करते हुए बताया कि हस्तिनापुर के दरबार में दुर्योधन के आदेश पर जब दुशासन एकवस्त्रा द्रौपदी का चीरहरण करने लगा तब वह सहायता की उम्मीद में हस्तिनापुर नरेश धृतराष्ट्र, भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य और अपने महान बलवान पांच पतियों की ओर बारी बारी से देखती है लेकिन उपरोक्त सभी सहायता के लिए खड़ा होना तो दूर अपना मुंह नीचे करके बैठे रहे। द्रौपदी कुछ समय तक अपने बल के सहारे दस हजार हाथियों के समान बल वाले दुशासन झूझती रही परन्तु कब तक झूझती ? अंततोगत्वा अपने दाँतो से साड़ी के पल्लू को दबा अपने दोनों हाथों को ऊपर उठाते हुए पुकारी कि हे द्वारिकानाथ अब मैं आपके सहारे हूँ,चाहो तो लाज बचाओ या तुम भी मुंह नीचे करके बैठे जाओ।जब संसार और परिवार के आश्रय को छोड़ा तो तुरंत भगवान दौड़े और इतना चीर बढ़ाया कि दुशासन जैसा बलशाली थककर गिर पड़ा लेकिन साड़ी बढ़ती रही कम नहीं हुई। द्रोपदी प्रसंग से शिक्षा मिलती है कि भगवान को सम्पूर्ण समर्पण अभिष्ट है,आधे अधूरे मन से भगवान की कृपा नहीं मिल सकती। सत्संग में लक्ष्मी यादव,परसन यादव और पारस प्रजापति ने भी कथा अमृत पान कराया।