भगवती के दर्शन-पूजन से मिटते है दैहिक-दैविक ताप

भगवती के दर्शन-पूजन से मिटते है दैहिक-दैविक ताप

कन्दवा(चन्दौली)। क्षेत्र के चिरईगांव स्थित मां रेहड़ा भगवती का मंदिर धार्मिक और पौराणिक इतिहास समेटे हुए है। इस सिद्ध मंदिर के बारे में कहा जाता है कि सच्चे मन से मां की पूजा करने वाले की हर मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।

क्षेत्र के चिरईगांव में कर्मनाशा नदी के तट पर स्थित मां रेहड़ा भगवती शक्ति एवं भक्ति की प्रतीक हैं। रेहड़ा भगवती के दर्शन- पूजन से दैहिक-दैविक ताप मिटते हैं और सुख –शांति की प्राप्ति होती है। यहां नवरात्रि में भक्तों की भीड़ उमड़ रही है। कर्मनाशा नदी के तट पर स्थित रेहड़ा भगवती का इतिहास रेहड़ा नाम के जंगल से जुड़ा हुआ है। इस मंदिर की स्थापना के बारे में गांव के बड़े बुजुर्गों का कहना है कि करीब 450 वर्ष पूर्व रेहड़ा के जंगल में पशुओं को चराते समय चरवाहों को मां की प्रतिमा जमीन में धंसी हुई दिखी थी। कुछ समय बाद धीरे धीरे वह प्रतिमा जमीन के ऊपर दिखने लगी। तब चरवाहों ने गांव के बड़े -बुजुर्गों से यह बात बताई।तब गांव के लोग वहां पहुंचे और तभी से वहां पूजन- अर्चन का काम प्रारंभ हो गया। गांव वालों ने पहले वहां एक छोटा सा मंदिर बनवाया था जहां फक्कड़ बाबा मां के मंदिर के पुजारी का काम करते थे।मंदिर के बगल में बनी फक्कड़ बाबा की समाधि आज भी मौजूद है। वर्ष 2014 त्रिदंडी स्वामी के शिष्य सुंदरराज जी महाराज ने लक्ष्मी नारायण महायज्ञ करवाया।गांव के लोगों का मानना है कि वहीं से गांव वालों में भक्ति की ऐसी अलख जगी कि गांव वाले मां की भक्ति में लीन हो गए। उसके बाद गांव के लोगों ने मां के छोटे मंदिर की जगह काफी भव्य मंदिर का निर्माण कराया।मंदिर के पुजारी दीनानाथ पांडेय ने बताया कि मां रेहड़ा भगवती की पूजा के लिए क्षेत्र के साथ-साथ बिहार और मध्य प्रदेश से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन पूजन के लिए आते हैं। गांव के हर जाति धर्म के नौकरी करने वाले लोग मन्दिर निर्माण और व्यवस्था के लिए हर माह पैसा भेंजते हैं।