सुप्रसिद्ध कथाकार डॉ० शिवप्रसाद सिंह की स्मृति में काब्य पाठ का हुआ आयोजन

सुप्रसिद्ध कथाकार डॉ० शिवप्रसाद सिंह की स्मृति में काब्य पाठ का हुआ आयोजन

जमानियाँ। साहित्यकार  के  द्वार  कार्यक्रम  के अन्तर्गत  सुप्रसिद्ध कथाकार डॉ० शिवप्रसाद सिंह के गाँव जलालपुर जनपद चन्दौली में हिन्दुस्तानी एकेडेमी प्रयागराज व हिन्दू पीजी कालेज के संयुक्त तत्वाधान में काव्यगोष्ठी का आयोजन गुरुवार की रात्री किया गया।

मुख्य अतिथि हिंदुस्तानी एकेडेमी, प्रयागराज के अध्यक्ष, डॉ. उदय प्रताप सिंह ने उपस्थित जन सैलाब को सम्बोधित करते हुए कहा कि हम यहां बाबू शिवप्रसाद सिंह की धरती को नमन करने आये हैं और यह प्रेरणा नव युवकों और बालमन में भरने आये है कि आप नए शिवप्रसाद सिंह के रूप में नवोदित हो ऊंचाइयां हासिल करें जिससे अपने साहित्यकार को हम सच्ची श्रद्धांजलि दी सकें। मैने इसी उद्देश्य से हिंदुस्तानी साहित्यकार के द्वार कार्यक्रम का शुभारंभ किया और पहला कार्यक्रम मऊ में वीर रसावतार श्याम नारायण पांडेय जी पर डॉ. शर्वेश पांडेय, डी. सी.एस. कॉलेज मऊ के सहयोग से तथा यह कार्यक्रम हिन्दू पी.जी.कॉलेज, ज़मानियां के हिंदी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अखिलेश कुमार शर्मा शास्त्री के और अपनी संस्था के संयुक्त तत्वावधान में कर रहे हैं। आने वाली पीढ़ियों को ऊर्जा मिले इस हेतु आप लोग डॉ. शिवप्रसाद सिंह जी की मूर्ति लगवाएं और गांव में पुस्तकालय का निर्माण कराएं तो यह संकल्प सिद्ध होगा और गांव अपनी पुरातन काल से आ रही उदात्तता को अक्षुण रख सकेगा। ग्रामवासी एवं मेडिकल स्टोर संचालक रमेश सिंह ने गांव का इतिहास वयां किया।सुप्रसिद्ध गीतकार एवं पूर्व अपर मंडलायुक्त प्रशासन , वाराणसी मंडल  ओमधीरज ने भरथरी शतक के छंदानुवाद – जिसके कारण उस कुटुंब को जाना जाता है, जन्म सार्थक उसी व्यक्ति का माना जाता है, यूं परिवर्तनशील जगत में कौन नहीं मरता, मरकर भी वह अमर कोटि पहचाना जाता है। प्रस्तुति कला व भाव भंगिमा ने उपस्थित जन मानस के हृदय पटल को धुलकर निर्मल कर डाला। ग्रामवासी विजयी सिंह सहित कई एक श्रोता गमछे से आंसू पोंछते मानों अपने कुल परिवार के स्वनामधन्य शिवप्रसाद सिंह को श्रद्धांजलि दे रहे हों।काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एवं ख्यातिलब्ध गजलकार प्रो.वशिष्ठ अनूप की रचना- भले ही बर्तनों की भांति लड़कर झनझनाओगे, फिसलकर जब गिरोगे तब पड़ोसी ही उठाएगा, कभी आंखें तरेरेगा कभी पोछेगा आंसू भी, समय पर जो रहेगा पास, वो ही काम आएगा। रचना काफी सराही गई। प्रो.अनूप ने गँवई मन की रचना पढ़ी तो लोगों के मन बाग-बाग हो गया। रचना देखिए- गांव घर का नज़ारा तो अच्छा लगा,सबको जी भर निहारा तो अच्छा लगा। गर्म रोटी के ऊपर नमक तेल था, मां ने हंसकर दुलारा तो अच्छा लगा। अजनबी शह्र में नाम लेकर मेरा, जब किसी ने पुकारा तो अच्छा लगा। यह रचना श्रोताओं के लोक मन की होने के कारण रच बस गई।
सुप्रसिद्ध गीतकार मिथिलेश गहमरी ने सधे शब्द संयोजन द्वारा चुटकी लेते हुए कहा- शराफ़त का भला कैसे वहां अधिकार चलता है, जहां मदहोशियों में जिस्म का व्यापार चलता है, शहीदों की चिताओं पर वहां मेला लगे कैसे, जहां सीना फुलाये देश का गद्दार चलता है। ग़ाज़ीपुर से पधारे डॉ. अक्षय पांडेय ने तो अपने कंठ से उपस्थित सभी नर नारी , बाल वृद्ध को मंत्रमुग्ध कर दिया- धूल धुंआ से भरे सफर में, आई है अम्मा, पहली पहली बार शहर में, आई है अम्मा,निष्प्रभ हुआ आईना मन का, समय सवाली है, दीवारों पर टंगी हुई, नकली हरियाली है, कैसे अपने सपने संवारे, आंखों में आकाश उतरे, बिन आंगन वाले इस घर में, आई है अम्मा। तालियों और संवेदना की अनुगूंज श्रोताएँ को एक और एक और कहने को बाध्य कर दी।अध्यक्ष द्वारा असहाय लोगों को कम्बल भी दिया गया।
इस अवसर पर सौरभ साहित्य परिषद के संस्थापक वरिष्ठ साहित्यकार राजेन्द्र प्रसाद सिंह , हिन्दू पी.जी.कॉलेज ज़मानियां के प्रबंधक लछि राम सिंह यादव,पूर्व प्राचार्य डॉ. अनिल कुमार सिंह, वरिष्ठ साहित्यकार रविनन्दन सिंह, डॉ. नरेंद्र सिंह, डॉ. शरद कुमार, डॉ. अरुण कुमार, सत्य प्रकाश सिंह,रमाशंकर सिंह, अजीत प्रताप सिंह, आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. अखिलेश कुमार शर्मा शास्त्री ने किया। हिंदुस्तानी एकेडेमी, प्रयागराज साहित्यकार के द्वार कार्यक्रम के अंतर्गत संगोष्ठी और काव्य पाठ कार्यक्रम की अध्यक्षता ग्राम प्रधान गिरीश विक्रम सिंह ने किया।