श्रीमद्भागवत कथा का हुआ आयोजन

श्रीमद्भागवत कथा का हुआ आयोजन

जमानिया। राधा-माधव ट्रस्ट सब्बलपुर में कोविड प्रोटोकॉल का पूर्णतः पालन करते हुए आयोजित श्रीमद्भागवत कथा में भागवताचार्य चंद्रेश महाराज ने कहा कि जीव यह सोचता है कि मैं इंद्रियों के माध्यम से भोगों का भोग कर रहे हैं परन्तु अनुभव में यह आता है कि धीरे धीरे इंद्रियां ही निर्बल होती जाती हैं और अंततः अपने आप को भोक्ता मानने वाला ही भोग बन जाता है। हम जानते हैं कि काल बीत रहा है, समाप्त हो रहा लेकिन होता यह है कि हम बीत जाते हैं और काल अनवरत गतिमान रहता है।

पौराणिक कथा समुद्र मंथन का उल्लेख करते हुए महाराज ने कहा कि किसी कार्य को प्रारंभ करने से पहले अथवा किसी पदार्थ अथवा संतति को पाने की चाह ही इसलिए होता है कि हमें आनंद की प्राप्ति होगी लेकिन अधिकतर मामलों में देखा जाता है कि आनंद के स्थान पर दुख और संताप ही मिलता है। समुद्र मंथन किया तो गया अमृत के लिए लेकिन सर्वप्रथम निकला हलाहल जहर। यदि कोई सद्गुरु की शरण मिल जाए जैसा कि उस वक्त जगद्गुरु शंकर मिल गए थे तो जीव आगे जीवन में भक्ति रुप अमृत भी मिलेगा।