बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की पुण्यतिथि पर भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी गई।

बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की पुण्यतिथि पर भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी गई।

गाजीपुर के जमानियां तहसील मुख्यालय स्थित सभागार में उपजिलाधिकारी डा, हर्षिता तिवारी, तहसीलदार देवेंद्र कुमार यादव आदि सहित विभागीय कर्मियों ने बुधवार को भारत रत्न से सम्मानित तथा समृद्ध और सुरक्षित भारत की नींव डालने में अहम किरदार निभाने वाले बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को हुआ था। उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी गई। तथा उपजिलाधिकारी डा, हर्षिता तिवारी ने उनके जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि वह अपने माता-पिता की 14 वीं और अंतिम संतान थे। डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर के पिता सूबेदार रामजी मालोजी सकपाल थे। वह ब्रिटिश सेना में सूबेदार थे। और बाबा साहेब के पिता संत कबीर दास के अनुयायी थे। और एक शिक्षित व्यक्ति थे। उन्होंने बताया कि डॉ.भीमराव राव अंबेडकर लगभग दो वर्ष के थे। जब उनके पिता नौकरी से सेवानिवृत्त हो गए थे। उस वक्त वह केवल छह वर्ष के थे। तब उसकी मां का निधन हो गया था। बाबा साहेब ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मुंबई में प्राप्त की। अपने स्कूली दिनों में ही उन्हें इस बात से गहरा सदमा लगा कि भारत में अछूत होना क्या होता हैं। तिवारी ने यह भी बताया कि डॉ. भीमराव अंबेडकर अपनी स्कूली शिक्षा सतारा में ही कर रहे थे। तब उनकी चाची ने उनकी देखभाल की बाद में वह मुंबई चले गए। अपनी स्कूली शिक्षा के दौरान, वह अस्पृश्यता के अभिशाप से पीड़ित हुए। 1907 में मैट्रिक की परीक्षा पास होने के बाद उनकी शादी एक बाजार के खुले छप्पड़ के नीचे हुई। तहसीलदार देवेंद्र कुमार यादव ने जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि डॉ.भीमराव अंबेडकर ने अपनी स्नातक की पढ़ाई एल्फिंस्टन कॉलेज, बॉम्‍बे से की, जिसके लिए उन्हें बड़ौदा के महामहिम सयाजीराव गायकवाड़ से छात्रवृत्ति प्राप्त हुई थी। स्नातक पूरी करने के बाद अनुबंध के अनुसार उन्हें बड़ौदा संस्थान में शामिल होना पड़ा। जब वह बड़ौदा में थे तब उनके पिता की मौत हो गई। वर्ष 1913 में डॉ.अंबेडकर को उच्च अध्ययन के लिए अमेरिका जाने वाले एक विद्वान के रूप में चुना गया था। यह उनके शैक्षिक जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। मेंयादव ने बताया कि उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय से 1915 और 1916 में क्रमशः एमए और पीएचडी की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद वह आगे की पढ़ाई करने के लिए लंदन गए। और वह ग्रेज़ इन में वकालत के लिए भर्ती हुए। और उन्हें लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस में डीएससी की तैयारी करने की भी अनुमति प्राप्त हुई लेकिन उन्हें बड़ौदा के दीवान ने भारत वापस बुला लिया। बाद में, उन्होंने बार-एट-लॉ और डीएससी की डिग्री भी प्राप्त की। उन्होंने जर्मनी के बॉन विश्वविद्यालय में कुछ समय तक अध्ययन किया। उन्होंने 1916 में ‘भारत में जातियां – उनका तंत्र, उत्पत्ति और विकास पर एक निबंध पढ़ा। 1916 में, उन्होंने भारत के लिए राष्ट्रीय लाभांश एक ऐतिहासिक और विश्लेषणात्मक अध्ययन पर अपना थीसिस लिखा और अपनी पीएचडी की डिग्री प्राप्त की। नायब तहसीलदार अवनीश कुमार ने बताया कि वे आठ वर्षों के बाद ब्रिटिश भारत में प्रांतीय वित्त का विकास शीर्षक के अंतर्गत प्रकाशित किया गया। इस उच्चतम डिग्री को प्राप्त करने के बाद बाबासाहेब भारत वापस लौट आए और उन्हें बड़ौदा के महाराजा ने अपना सैन्य सचिव नियुक्त किया। जिससे कि उन्हें लंबे समय में वित्त मंत्री के रूप में तैयार किया जा सके। बाबा साहेब सितंबर, 1917 में शहर वापस लौट आए। उक्त मौके पर वरुण कुमार सिंह, शैलेंद्र कुमार यादव आदि सहित क्षेत्रीय लेखपाल व कानूनगो मौजूद रहे।